Wednesday, September 26, 2012

बनवारीलाल शर्मा को श्रद्धांजलि

१२ अगस्त २०१२ को प्रयाग विद्यापीठ के उनके साधारण से कार्यायालय में बनवारी लाल शर्मा जी से मिला तो उसी पुरानी बेंत की कुर्सी पर जल के कार्पोरेटीकरण की सरकारी तैयारी पर एक लेख संपादितकरते हुए उतने ही ऊर्जामय और अन्वेषक-भाव में मिले जैसे पहली बार ४० साल पहले विश्वविद्यालय के गणित विभाग की बी.एस्सी.(I) की कक्षा में. लगभग २ घंटे की बातचीत में पानी के भावी कारपोरेटीकर्ण पर चिंता छाई रही. यह नव-उपनिवेशीकरण की शायद आख़री मंजिल हो. इलाहाबाद जैसे सामंती माहौल में, जहाँ प्रोफ़ेसर लगता था किसी और गृह के प्राणी हैं और सीनियर "सर", एक युवा और ओजस्वी प्रोफ़ेसर का प्रथम वर्ष के विद्यार्थियों से सहज समानुभूति से मिलना एक सुखद आश्चर्य था. गुरूजीजी से संवाद और विवाद  के संस्मरण कभी विस्तार से लिखूंगा. जब इन्होने Abstract Algebra पढ़ाना शुरू किया (जीरो नाम से लिखी इनकी इस विषय पर लिखी किताब अद्भुत है.) तब तक मालुम नहीं था कि प्लेटो ने अपने अकेडमी में गणित न् जानने वालों का प्रवेश-निषेध कर रखा था. गुरूजी (मुझे गुरूजी कहने की अनुमति दे दिया था) एक सार्थक, गतिशील जीवन जीते हुए आज़ादी बचाने के अभियान में सक्रियता के दौरान ही चल दिए. काश अभी न जाते लेकिन अमर तो सिर्फ "देवता" होते हैं. शत शत नमन सर.

याददाश्त लगता है कमजोर पड़ रही है. १९९१-९२ की कभी की बात है. बाबरी मस्जिद तब तक ध्वस्त नहीं हुई थी लेकिन वातावरण में उन्माद था. शर्मा जी ने  इलाहाबाद की 'इंसानी बिरादरी' के साथ मिलकर  गांधी भवन में साम्प्रदायिकता विरोधी सम्मलेन का आयोजन किया था. दिल्ली के 'साम्प्रदायिकता विरोधी आंदोलन' की तरफ से कुछ लोग भागीदारी करने गए थे(उनमें से एक आजकल संघ लोक सेवा आयोग के सदस्य हैं). सम्मलेन में साम्प्राद्यिकता विरोध की सैद्धांतिक समझ और हिंसा हिंसा में भेद को लेकर हमारे मतभेद भोजनावकाश की चर्चा का विषय बन गया. गुरूजी को तो कभी उत्तेजित होकर बोलते ही नहीं सुना, दुर्भाग्य से यह सद्गुण मैं उनसे नहीं ग्रहण कर पाया. मैं माफी माँगने के अंदाज़ में  पूँछा कि वे मेरी बातों से नाराज़ तो नहीं हुए. उन्होंने बड़प्पन दिखाते हुए पीठ पर हाथ रख कर काम्प्लिमेंट दिया कि उन्हें बेबाकी से बात रखने वाले अपने स्टुडेंट्स पर फक्र है. मुझे फ़क्र है कि बनवारीलाल शर्मा जी का मैं एक चहेता शिष्य रहा हूँ. शत-शत नमन सर. हाई स्कूल में किसी से सुना था, "जब तलक है दम कलम में मैं तुम्हे मरने न दूंगा/ मौत कितने रंग बदले, ढंग बदले तर्ज़ बदले मैं तुम्हे मरने न दूंगा. जब तलाक दम है कलम में मैं तुम्हे मारने न दूंगा." हार्दिक श्रद्धांजलि.(२८.०९.१२)

1 comment:

  1. Shri Rajiv Dixit aur Shri Banwari Lal Ji me adjure sapno ko hm jarur pura karenge.

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