Monday, July 1, 2013

लल्ला पुराण ९३

वाल्मीकि रामयाण बुद्ध के बहुत बाद लिखी गयी है, कौटिल्य के 

अर्थशास्त्र के भी बहुत बाद. कविता और उपन्यास में

कवि/लेखक की कल्पना द्वारा हकीकत का अमूर्तीकर्ण किया जाता है. 

कभी कभी हम उसके पात्रों को ऐतिहासिक/दैविक


मान लेते हैं. पुष्यमित्र द्वारा बौद्ध जन-संहार के बाद हूण-कुषाण काल में

बौद्ध दर्शन के पुनर्प्रसार से

संकट में पड़े वर्णाश्रमवाद यानि ब्राह्मणवाद की पुनर्स्थापना का यह एक

प्रभावी प्रयास था.


प्रणाम अग्रज! भाषावैज्ञानिक शब्दों के वश्लेषण की आधार रामायण का रचना काल महाभारत के बाद और मनुस्मृति के बाद का मानते हैं. कौटिल्य अर्थशास्त्र में लगभग हर पूर्ववर्ती विद्वानों और गुरुओं एवं परम्पराओं के विचारों को उद्धृत करने के बाद ही अपने विचार प्रदिपादित करते हैं. वाल्मीकि के विचार या राम नाम के किसी चरिते का वर्णन नहीं करते. कृष्ण की चर्चा जरूर है. विजिगिशु को राय देते हैं की विजय अभियान पर निकलने के पहले उसे देवताओं और दानवों का स्मरण कर लेना चाहिए और कृष्ण को कंस के साथ दानवों की श्रेणी में रखते हैं. उन्ही का समकालीन मेघस्तानीज  कृष्ण की चर्चा सूरसेन क्षेत्र (मथुरा) के एक स्थानीय लीजेंडरी नायक के रूप में करता है. यानि कि कौटिल्य के काल तक कृष्ण एक आर्य नायक नायक भी नहीं थे.

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