Wednesday, July 10, 2013

लल्ला पुराण ९७


बुद्ध न राजा थे न राजकुमार. मैंने एक बार उत्तर वैदिक गणतंत्र पर एक प्पोस्त डाला था ईद मच पर, बहुत पहले. गंगा के दक्षिण मगध और काशी जैसे राजतंत्र थे और उत्तर संघीय व्यवस्थाएं थीं, जिन्हें प्राचीन भारत के इतिहासकार "उत्तर-वैदिक" गणतंत्र कहते हैं. मगध एवं एनी आक्रमणकारियों के विरुद्ध शाक्य जनजातीय गणतंत्र १२ गणतंत्रों ने वैशाली के नेतृत्व में महासंघ बना रखा था जिन्होंने बिम्बसार और अजात शत्रु के शासन काल में मगध के आक्रमणों को निरस्त करते हुए उसे पराजित करके  वापस चले जाते थे. उनकी ब्नाव्सेना काफी सशक्त और कुशल थी. इन गणतंत्रों में स्थायी सेना नहीं होती थी किन्तु सभी नागरिक -- स्त्री-पुरुष -- सैन्य-कार्य मेर प्रशिक्षित होते थे और युद्ध के समय हल-कलम-शिल्प छोड़ सैनिक बन जाते थे. राहुल सांस्कृत्यायन के अनुसार, स्त्रियां अक्सर चिकित्सा यूनिट में होती थीं लकिन कई स्त्रिया नवसेना और घुडसवार सेना में भी तीर-तलवार की निपुणता दिखाती थीं.

बुद्ध के पिता शाक्य-गणतंत्र के मुखिया थे. पड़ोसी राज्य के साथ बड़ी के पानी के बंटवारे को लेकर युद्ध की नौबत आयी और बुद्ध ने युद्ध का विरोध किया जो कि राजनैतिक अपराध मना जाता था. प्राचीन यूनान की तरह वहाँ भी नियम था निर्वासन या मुक़दमा.बुद्ध ने निर्वासन चुना और गौतम से बुद्ध  होने के बाद ही दुबारा कुशीनगर गए. सुकरात ने एथेंस में मुक़दमे का सामना पसंद किया और मृत्यदंड पाया. अरस्तू ने निर्वासन चुना था और चेल्सिया नमक राज्य में २ साल बाद मर गए मौत के बाद अपने असंख्य गुलामों को मुक्ति देकर. मनु का काल बुद्ध के काल से कम-से-कम ६-७०० साल बाद आता है, जब ब्राह्मणवाद(वर्णाश्रम) बौद्ध प्रभाव से चरमरा रहा था. मनुस्मृति में बहुत सा अंश सीधे महाभारत से लिया गया है (इसका उलटा इसलिए नहीं है क्योंकि महाभारत मनुस्मृति से पुराना माना जाता है). बुद्ध के पोराभ्हाव से लड़ पाने में अक्षम ब्राह्मणवाद ने उभे अवतार बना दिया.

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