Saturday, July 13, 2013

अकेले नहीं लड़ी जाती कोई जंग

अकेले नहीं लडी जाती कोई जंग
अकेले ज़िंदगी काटी जाती है
एक गुलाम समाज में
निजी आज़ादी का एहसास
सब्जबाग की एक मरीचिका है
गर होना है सचमुच  आज़ाद
मुक्त करना पडेगा समाज को
छेड़ने पड़ेंगे तराने जंग-ए-आज़ादी के
तैयार करना पडेगा एक कारवाने जूनून
मेहनतकश के जनसैलाब का
बीत चूका है दुर्गद्वार पर
दस्तक देने का वक़्त
नहीं होता बीच कोई रास्ता
तोड़ना ही है वर्चस्व का दुर्ग
बसाने के लिए एक सुन्दर मुक्ति-द्वीप
[ईमि/१४.०७.२०१३]

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