Monday, July 15, 2013

लल्ला पुराण ९८

इस पोस्ट में निजी और सामाजिक आज़ादी के अंतरसम्बंदों पर इलाहाबाद के एक फेसबुक ग्रुप में मेरी एक कविता पर कमेंट्स पर मेरे कमेन्ट हैं.

अग्रज प्रणाम. पूंजीवाद यानि कि आधुनिकता एक दोगली व्यवस्था है. कथनी करनी के अपने  अन्तर्निहित अंतर्विरोध को छिपाने के लिए यह खुशफहमियां बेचता है. सामूहिकता से अलग निजी आजादी वैसी ही एक खुशफहमी है. व्यक्ति का अस्तित्व एक व्यक्ति के र्पूप में नहीं होता किन्तु एक सामूहिकता के हिस्से के रूप में होता है जिसमे वह एनी व्यक्तियों के साथ अपनी इच्छा के स्वतंत्र एक सामाजिक रिश्ते में जुदा होता है. क या ख गुलाम या मालिक एक व्यक्ति के रूप में नहीं बल्कियो समाज के अभिन्न हिस्से के रूप में एक स्तापित सामाजिक संबंधों के तहत ऐसे होते है. स्वेच्छा से कोइ भी गुलाम या बीबी नहीं बनाना चाहेगा.



This is a comment on a comment on a  poem of mine on individual v/s collective freedom. Please comment.

 The existing liberal "freedom", which we also call the bourgeois freedom, is freedom not in association with others but in separation from others. The institution of private property creates inequalities that leads to relative freedom and unfreedom. One is sole owner of  of ones' possessions and can dispose of as he/she wills without consideration to others. A is not slave and master as natural individual but in and through a society under certain social relations which he/she has entered in the process of historical development independent of his/her conscious will. One sees not realization of his/her freedom in others' freedom but its limitation.

I'll explain it with an example: A, B and C are 3 individuals. A is, let us say, a university professor like me or Dhirendra bhai. He/she has modestly very good income from public money. He has quite congenial atmosphere around him a 'happy' family; has reasonably good friends and followers, people take him seriously on fb.  Though would not mind a palatial accumulation on Pandit Pant Marg and also won't mind owning a helicopter but is happy in his British period modest bunglow in the University and a Hundayi i10. Would not mind having his own holiday home in Mussoorie but is quite happy to find a place to holiday in LBS Academy or Advanced Srtudies (Shimla). He is free to write or not to; to speak or not to on any6thing; on capitalism/Communalism/communism/gender... .  as long as it does not become dangerous for the system. If you ask A, is he free? Instant answer is, "of course. Is there any doubt?"

 B, is let us say is a CHHOTU or BAHADUR working on a grocery shop or a Dhaba. His morning begins at 5-6 AM and day ends at 9-10 PM. He has a shelter in the shop to spend the night and something to eat. His knowledge is his acquired moralities like sex unpalliated marriage is sin; obedience to master and eldersd is virtue. His only source of entertainment and education is TV in the shop. He has no time to think aboput freedom or unfreedom. His only worry is  that the Master might get angree on his some word/act and kick him out and he would be on roads again.

C is an honest, educated, unemployed man/woman with a PhD degree in his/her 30s. He/she is free to do anything. He can write/speak on communism/capital;ism/disasters in Uttarakhand/deteriorating academic level in AU and so on... But we al know he/she does not do any of these things. He feels angry with family who think he is good for nothing. He feels bitter against better off friends. ....   And one evening he hangs himself from the ceiling fan for which he is absolutely free.

If you ask A that if he is free then are B&C also free? His answer would be no. Then are unfreedoms of B&C unrelated to the freedom of A? How can they be made free? By raising them to the level of A and that needs nothing less than a revolution which we seek. If B&C are unfree, is the society free? Can an individual be free in an unfree society? My answer is no. To be free, society has to be freed. Freedom in an unfree society is an illusion.

मैं अपनी बात आपी आख़िरी बात से शुरू करता हूँ. कविता में समाज का अंतर्विरोध झलकता है और जैसा मैं पहले कह चुका हूँ कि इतिहास की गति अंतर्विरोधों यानि विलोमों की द्वद्वात्मक संश्लेषण से निर्धारित होती है. आपने बिलकुल सही कहा, मेरी कवितायें नारा ही होती हैं जिसकी स्वीकारोक्ति मैं एकाधिक कविताओं में कर चुका हूँ. (RADICAL, ishmishra.blogspot.com). मार्क्स ने एक ख़ास सन्दर्भ में, मजाक में कहा था कि वे मार्क्सवादी नहीं थे. मार्क्सवाद कोइ जड़ वास्तु या आस्था नहीं है, मार्क्स के बाद मार्क्सवाद काफी दूरी तय कर चुका है. यह कोइ बंद दडबा नहीं है बल्कि चारों तरफ से खुला हुआ एक मडहा है.

आपके दुर्लभ विचारों के लिए साधुवाद. आप ठीक कह रहे हैं कि समाज विभिन्न व्यक्तियों से हे नहीं विभिन्न किस्म के व्यक्तियों से  बना है. भिन्नता को असमानता के रूप में परिभाषित करने का काम शासक वर्गों के रखैल९जैविक बुद्धिजीवी करते रहे हैं. पहले भिन्नता को असमानता केरूप मन परिभाषित करते हैं और फिर उसी परिभाषा से असमानता सिद्ध करते हैं. अरस्तू के अनुसार, गुलाम  होते हैं जिनमें बुद्धि की कमी होती है, इसका पता कैसे चलता  है, वे गुलाम हैं इसी से. व्यक्ति का सर्वांगीण विकास एक वर्ग-विहीन शोषणमुक्त समाज में ही हो सकता है क्योंकि तब व्यक्ति का अपनी रचनाशीलता और श्रम-शक्ति पर अपना अधिकार होगा. जब तक कोइ बात घटित नहीं होती तब तक वह एक काल्पनिक आदर्श लगती है.हमारे छात्र-जीवन से अब तक दलित-प्रज्ञा और दावेदारी तथा नारी-प्रज्ञा और दावेदारी लम्बी छलांग लेकर जातिवाद और मर्दवाद के दुर्गद्वारों पर बुलंद दस्तकें तब एक काल्पनिक आदर्श लगता था. द्वंद्वात्मक भौतिकवाद का नियम है, निरंतर, क्रमिक मात्रात्मक परिवर्तन क्रांतिकारी गुणात्मक परिवर्तनों में परिपक्व होते हैं. एक क्रांतिकारी असंभव पर निशाना साधता है और सैद्धांतिक रूप से उसकी संभाव्यता प्रमाणित करता है जिसकी कार्यरूप में परिण प्रमाणित करता है औसके ति महज वक़्त का मामला है.

Shailendra Singh मैंने captive intellectual का हिन्दी अनुवाद कर दिया है. टाइपिंग की गलती से "जैविक" के इर्द-गिर्द कोष्ठक छूट गया और 9 छप गया. किसी ख़ास वर्ग के हितों के हिमायती चितकों के लिए ग्राम्सी ने जैविक (organic) बुद्धिजीवी का सिद्धांत प्रतिपादित किया है (Antonio Gramsci, Selections from Prison notes). उपरोक्त कमेन्ट में रखैल बुद्धिजीवी शब्द का इस्तेमाल मानव-निर्मित असमनाताओं को स्वाभाविक बताने वाले दार्शनिकों और ख़ासकर, अरस्तू के प्राचीन ग्रीस की दासता की हिमायत में सन्दर्भ में कही गयी है. "Who is a slave?","one who is rationally deficient". "what determines rational deficiency? "the fact that one is slave". the circular logic. अब अरस्तू या हेगेल की आलोचना से किसी की भावनाएं आहत हों और वह बौखला जाये तो मैं क्या कर सकता हूँ? अशालीन भाषा क्या होती है? अरस्तू को तत्कालीन शासकवर्गों (गुलामों के मालिकों) का captive intellectual कहना ज्यादा अश्लील है या किसी निष्ठावान व्यक्ति को पता नहीं किसका चेला बताना या बिना तर्क के लकीर का फकीर बताना? कुछ लोगों को मार्क्सवाद को गालियाँ देने का लाइलाज रोग है. वे यदि थोड़ा-बहुत मार्क्सवाद पढ़ भी लेते तो उनकी गालियों का गुरुत्व कुछ बढ़ जाता.

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