Wednesday, July 24, 2013

लल्ला पुराण १०२

मुझे वाकई  तरस आता है ऐसे पढ़े लिखे जाहिलों पर जो एक फासिस्ट नरपिशाच को देश का प्रधानमंत्री बनाना चाहते हैं जिसने चुनावी फायदे  के लिए हिटलर की तर्ज़ पर नरसंहार और उससे भी दो कदम आगे सैकड़ों सामूहिक बलात्कार ओरायोजित किये हों. आडवानी द्वारा फैलाए गए धर्मोन्माद और साम्प्रदायिक जहर की आग पर जिसने  चुनावी  रोटियाँ सेंक कर कुर्सी हासिल की हो और साम्प्रादायिक ध्रुवीकरण के लिए पुलिस को जरखरीद गुलाम बनाकर फर्जी मुठभेड़ें प्रायोजित किये हों. अपने मानस पिता के लिए भस्मासुर बने इस देशद्रोही, जघन्य अपराधी की  ज़रा एक बात बताइए जो इसे युगद्रष्टा साबित करे. वे पढ़े-लिखे जाहिल भी मानसिक रूप से उसी के बराबर  कमीने नरपिशाच हैं जो इस फासीवादी के महिमामंडक भोंपू बने हैं.. ये जाहिल संघी अपने ही अंतर्विरोधों को राष्ट्रे राजनीति का मुद्ददा बनाने पर तुले हैं. मुकेश जी थोड़ा पढ़ें लिखें, इलाहाबाद विश्वविद्यालय की गरिमा पर और कालिख न पोतें.

धीरेन्द्र भाई प्रणाम! एक व्यक्ति के हत्यारे को हत्यारा और बलात्कारी को  बलात्कारी कहने में यदि आपत्ति नहें है तो हजारों बेकसूरों की ह्त्या और सैकड़ों महिलाओं के साथ  बलात्कार/ह्त्या के प्रायोजक को नरपिशाच कहना तल्ख़ भाषा कैसे हो गयी. वैसे मैं इलाहाबाद के बाद कई सालों जे.एन.यु. में रहा हूँ, जो अभिव्यक्ति अनुपयुक्त लगे वह समझ लीजिये जे.एन.यु. का प्रभाव है. और किसी  फासीवादी जनसंहार के  प्रायोजक की महिमामंडन करने वालों को जाहिल और नरपिशाच से कम तल्ख़ विशेषण क्या दिया जा सकता है. इससे तल्ख़ भाषा के लिए काश मैं भाषाविद होता या भाषा ही समृद्ध होती.

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