Thursday, July 18, 2013

रक्तपात

रक्तपात
ईश मिश्र
जी हाँ सदियों से होते रहे हैं रक्त-पिपासु इंसान
काटे जसने जितने सर बन गया वह उतना ही महान
तलवार के नोक पर बनते-बिगड़ते साम्राज्य थे
कातिलों के गिरोह के मुखिया बन जाते महाराज थे
तोड़ते थे सांस्कृतिक प्रतीक बाहुबल के अहंकार में
कट जाते थे हाथ उठते जो प्रतिकार में
इतिहास भरा पडा है इन महानों की वीरगाथाओं से
मानवता के रुदन की मार्मिक कथाओं से
लम्बी कतार है महान सिकंदरों, अशोकों, अकबरों की
कोलम्बसों, नैपोलियनों, मुसोलिनी-हिटलरों की
 पंजाबों, कलिंगों और मेवाडों के ज़ख्मों की
इंका और अज्टेक के खंडहरों में गूंजती आहों की
जी हाँ, हजार साल पहले आया था एक लुटेरा महमूद
सोने-चांदी की लालच में किया था सोमनाथ को नेश्तनाबूद
बचा नहीं सके उसे चंद लुटेरों से उसके असंख्य भक्त
भगवान् तो होता ही भक्तों को बचाने में अशक्त
कहाँ खो गए थे हमारे सारे शूर-वीर
लूट रहा था महमूद जब सोमनाथ की जागीर
लूट कर ले गया वह संपत्ति अपार
भगवान क्यों करता है इतनी धन-दौलत का कारोबार
नहीं था महमूद पहला या अंतिम लुटेरा
बनाते रहे हैं लुटेरे इस मुल्क को बसेरा
कुछ घुड़सवारों के साथ आता है एक चरवाहा, नादिर शाह
रौंदकर पेशावर से बंगाल तक कर देता है तबाह
होती है ऐसे समाजों की यही नियति
बहुजन हों जहाँ शस्त्र-शास्त्र से वंचित
आये यहाँ मुट्ठी भर अंग्रेज करने को व्यापार
लूटते रहे मुल्क को पूरे दो सौ साल
सीख ली मोदी ने मुसोलिनी-हिटलरों से
चंगेजों, महमूदों, नादिरशाहं से
मार दिए उसने काफी मुसलमान
बन गया वह कार्पोरेटी दुनिया में महान
होता है जहां भी मासूमों का रक्तपात
बढ़ जाता है पीड़ा से आवाम का रक्तचाप
बंद होना चाहिए क्रूर कातिलों का गुणगान
चैन से रह पायेगा तभी इन्सान
अतीत के पुनर्जन्म की कोइ भी खुराफात
साजिश है गहरी भविष्य के खिलाफ
[ईमि/१९.०७.२०१३]

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