Thursday, June 22, 2017

ढोंगी-रोगी समाज में

दुर्भाग्य होता है पैदा होना किसी ढोंगी-रोगी समाज में
मुल्क बिकता हो जहां आद्ध्यात्मिकता की सड़ांध में

शर्म तो आती ही है पैदा होने पर एक ऐसे गलीच समाज में
गर्व महसूस करते हों लोग जहां सड़क छाप लंपटों राज में

लगता है इस समाज का स्थायी भाव है असाध्य मनोरोग
रोटी के सवाल को दरकिनार करता जहां भोगियों का योग

बुतपरस्त-मुर्दापरस्तों की नुमाइंदगी का है यह समाज
नफरत के सौदागर आसानी से कर सकते इस पर राज
(पूरा करना है)

फेंकू से बेंचू

जिसे लोग फेंकू समझते थे
निकला यह दर-असल बेंचू
होते ही गद्दी पर विराजमान
बेच दिया देश का संविधान
पूरा करने को बजरंगी वीरों के अरमान
थमा दिया उनको कानून-व्यवस्था की कमान
किया दस्तखत नैरोबी में गैट्स के दस्तावेज पर
बेच दिया शिक्षा और खेती विश्वबैंक के आदेश पर
पहले से ही जारी थी जल-जमीन-जंगल की बिक्री
राष्ट्रवादी ऊर्जा इसने उसमे चारचांद लगा दी
शुरू किया है बेचना इसने अब रेल
होगा फिर आसमान बेचने का खेल
जनसंपदा की बिक्री की लंबी है फेहरिस्त
जन है मगर राष्ट्रोंमाद के तगड़े नशे में मस्त
बचेगा नहीं कुछ बेचने को राष्ट्रपति भवन के सिवा
धनपशुओं को भी तो चाहिए रायसीना हिल्स की हवा
(ईमि: 22.06.2017)

Monday, June 12, 2017

नवाबी उपवास

वैसे तो नवाब था
मगर समझता खुद को सहंशाह
किसानोॆ ने जब हक़ माना
बना दिया उन्हें शैतान और हैवान
करने लगा उपवास शांति के लिए
पुलिस गोलीबारी में नहीं मरा कोई किसान
शहीद हुए वे देशभक्ति की मिशाल के लिए
पता चला जैसे ही यह रहस्य नवाब को
मुल्तवी कर दिया अनिश्चितकालीन उपवास
अनिश्चित काल के लिए
कम से कम तब तक के लिए
जब तक फिर नहीं उतरते किसान हैवानियत पर
और घेर लेते हैं राजभवन
इस बार सदा के लिए
(ईमिः11.06.2017)

Thursday, June 8, 2017

वर्दी का हिसाब

सुनो चौपट निज़ाम के बड़बोले वर्दीधारी
तुम अगर वर्दी के गुमान में
और ट्रेनिंग की ड्रिल से
दिमाग से पैदल न हो गए होते
तो जानते कि यह वर्दी हमारे पैसे की है
यह भी जानते कि जिस बंदूक से
तुम हमें डराना चाहते हो
वह भी हमारे ही पैसे से खरीदी गयी है
हमारे पास बंदूक नहीं है
फिर भी हम डरते नहीं
तुम खुद की डर पर पर्दा डालने को
हमें डराने की धमकी देते हो
तुम डरते हो कि कहीं हम तुमसे
वर्दी का हिसाब न मांगें
मांगेगे जरूर
आज नहीं तो कल
(ईमि: 06.06.2017)