Tuesday, August 1, 2017

फुटनोट 109 (हिटलर की हिंदुत्व औलादें)

हम (जगे जमीर के लोग) विपक्ष हैं, सड़कों पर उतरना पड़ेगा। जो भी संसद और विधानसभाओं में पहुंचे हैं सब धनपशुओं के गुलाम करोड़-अरबपति हैं, सब चोर-उचक्के-हत्यारे हैं। जहां एक सड़क छाप लंपट साधू आराध्य बन जाये और एक तड़ीपार देश को दिशानिर्देश थे और हत्या -बलात्कार का आयोजक गद्दीसीन हो नैतिकता का आदेश दे, उस देश के जनमानस पर तरस आता है, लेकिन हम लड़ाई जारी रखेंगे साथी वह दिन दूर नहीं जब जगे जमीर के छात्र-शिक्षक (शिक्षकों में जगे जमीर की तुलना में मरे-बिके जमीर वाले ज्यादा हैं, फिलहाल); किसान-मजदूर; दलित-आदिवासी असली विपक्ष हैं बस इन्हें जगाना है। फासीवाद अपनी कब्र खोदकर अपनी का इंतजाम खुद करता है, इतिहास इसका गवाह है। कैलीगुला; नीरो; नेपोलियन; बोनापार्ट; मुसेलिनी; फ्रैंको; हिटलर; इंदिरा-संजय गांधी की मिशालें सामने हैं। कैलीगुला कहता था कि उसे परवाह नहीं कि लोग उससे नफरत करते हैं, जब तक कि वे उससे डरते रहे। हर तानाशाह की तरह वह कमीना-मूर्ख था। उसे उसी के सानिकों ने, जिनके बल वह लोगों को भयभीत रखता था, उसे प्रताड़ित कर कर के मारा और उसकी लाश पर रोने वाला कोई नहीं था। मुसोलिनी को जनता ने दौड़ा-दौड़ा कर लात-जूतों से मार डाला और उसकी लाश टांग दिया था। हिटलर को कायर चूहे की तरह माद में छिप कर आत्म हत्या करनी पड़ी थी, एक समय उसका जनसमर्थन मन की बात करने वाले उसके उत्ताधिकारी से अधिक था। ये सब इतिहास के कूड़ेदान में कीड़ों-मकोड़ों की तरह बजबजा रहे हैं। उनके हिदुस्तानी नाजायद औलादों का भी यही हाल होगा, गोरक्षक हत्यारे खून के धब्बे साफकर भगवा अंगोछों को जला देंगे लेकिन जनता उन्हें पहचान गयी है, मुसोलिनी की तरह दौड़ा दौड़ा कर लात घूंसो से उनका काम तमाम कर देगी। वैसे मेरी राय में मुसोलिनी को भी नहीं मारना चाहिए था,उसे और उसके फासिस्ट गुंडों को पिजड़े में बंद कर दोपाया जानवरों का अजायब घर बनाना चाहिए था।

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