Saturday, August 12, 2017

सुनो मेरे नौनिहालों!

सुनो मेरे नौनिहालों
तुम तो रहे ही नहीं कि समझ सकते
नौ महीने तुम्हें पेट में संभालने की मां की पीड़ा का सुख
पैदा होते ही तुम्हारी जरूरत और हिस्से की ऑक्सीजन
मुनाफाखोरी के हत्थे चढ़ गयी
ठेकेदार डकार गया तुम्हारे हिस्से की ऑक्सीजन
क्योंकि देश ठेके पर है
हमने पैदा होते ही तुम्हारी मौत की खबर पढ़ी
फेसबुक पर लिख दिया दुखद
और देखने लगे टीवी पर
हिंद महासागर में रामसेतु के अन्वेषण की खबर
और उस पर राम, लक्ष्मण, सीता तथा बानर-भालुओं के पैरों के निशान
तुम तो रहे ही नहीं कि समझ सकते
नौ महीने तुम्हें पेट में संभालने की पीड़ा का सुख
कैसे समझोगे नानी के उन सपनों की उड़ान
पेट काटकर अपना खिलाती थी तुम्हारी मां को पौष्टक भोजन
तुम्हारी खुराक़ के लिए
नहीं जानती वह किसानिन गैलेलियो या रोजा लंक्ज़म्बर्ग का नाम
लेकिन सोचती रहती थी धान की निराई करते हुए
कि नाम करेगी उसकी औलाद
तुम तो रहे नहीं कि समझ सकते नानी का उल्लास
और यह बात कि छिपी थीं तुममें संभावनाएं
बनने की गौतम बुद्ध, भगत सिंह, मार्क्स, क्लारा ज़ेटकिन या सिमन द बुआ
तुम्हारी मां-नानी ने भी सुना था उस अस्पताल का नाम
बच्चे जनने के लिए है जो सन्नाम
नाम है सातवां आसमान
दिल मसोस कर रह गयीं सुन आसमान छूते दाम
सरकारी अस्पताल भी होना चाहिए था तुम्हारे सुरक्षित रहने का स्थान
लेकिन तुम्हारे हिस्से की ऑक्सीजन
रामराज की बदइंतजामी के हत्थे चढ़ गयी
तुम तो रहे नहीं कि समझ सकते मां-नानी के आसमान छूते अरमान
सुनते ही तुम्हारी क्यां-क्यां की किलकारी
और उन्हें मरते हुए
सुनकर पैदा होते ही तुम्हारी मौत की खबर
और गिरते हुए उनपर दुख का पहाड़
अब और नहीं लिख सकता मेरे नौनिहालों
क्योंकि तुम तो रहे नहीं कि देख सकते
तकलीफ और अपराध बोध से भर आया मेरा मन
और छलकती आंखें समाज की बर्बर संवेदनाओं पर
खेलते हुए अपनी नौ महीने की नतिनी के साथ
हो जाता है मन उदास
सोचकर नौ महीने तुम्हें पेट में पालने की मां की पीड़ा
और पैदा होते ही सरकार द्वारा तुम्हारी हत्या की बात
जिसने ठेकेदारी के चक्कर में गायब कर दी तुम्हारे हिस्से की ऑक्सीजन
क्योंकि देश ठेके पर है
बिना जाने मेरी उदासी का सबब या पता नहीं
हो जाती है मेरी नौ महीने की नतिनी भी बहुत उदास
तुम तो समझ नहीं सकते ये सब बातें
क्योंकि तुम तो रहे नहीं
हत्या कर दी समाज ने तुम्हारी पैदा होते ही
मैं भी तुम्हारा अपराधी हूं मेरे नौनिहालों
क्योंकि मैं भी इसी समाज का हिस्सा हूं।
(ईमि: 13.08.2017)

No comments:

Post a Comment