Sunday, August 13, 2017

देशद्रोहियों की बढ़ती तादात

बढ़ती ही जा रही है मुल्क में देशद्रोहियों की तादात
और दीवारो पर
पता नहीं किस-किस से, कैसी कैसी आजादी के नारे
यहां तक की मां-बाप से भी आज़ादी
वैसे भी ये दो-चार भी दिखते हैं कई हजार
इसीलिए आया देशभक्त सरकार के मन में
इनके मुख्यालय पर टैंक की तैनाती का विचार
डर से छोड़ देगें देशद्रोही आचार-विचार
मगर ये ससुरे बड़े जीवट वाले होते हैं
निडर और ढीठ
भरा होता है इनमें भगवान को भी ललकारने का
भगत सिंह सा अहंकार
स्पार्टकस सी जिद तोड़ने की गुलामी की पवित्र जंजीरें
और दिमाग तो सालों का इतना तेज चलता है
जैसे सूरज की किरणों के वेग से कर रहा हो प्रतिस्पर्धा
इन्हें डराने के लिए बनानी पड़ेगी नई रणनीति और कूट नीति
फिर से पढ़ना पड़ेगा कौटिल्य का शासनशिल्प
और उसमें वर्णित साम-दाम-भेद-दंड के चतुर्गुणः
और गहन विचार करना पड़ेगा प्रथमिकता पर
लगता है डरना ये जानते ही नहीं, जेयनयू की तरह
साम में कोई टिक नहीं सकता इनके सामने
तर्क ही नहीं करते हैं देते हैं तर्कों को मायने
दाम की तो बात ही है बेकार
कटा सकते हैं ये सिर ये
होंगे नहीं मगर बिकने को तैयार
भेद की आजमाइश भी हो गयी बेकार
कितनी तो कोशिस की शासन, पुलिस और मीडिया ने
बांटने की दो देशद्रोहियों अनिर्बन और उमर को
लेकिन उनकी कॉमरेडरी तो विचारों की है
क्रांति के साझे सरोकारों की है
जो टूटने की बात क्या और पक्की हो जाती है
विद्रोह की सनक और भी बढ़ जाती है
कुल मिलाकर बचता है एक ही विकल्प
दंड यानि देद्रोहियों का खात्मा
तभी होगी देश भक्ति की तृप्त आत्मा
वैसे तो है कारीख में मिशालों की भरमार
उनमें से दो पर किया जा सकता है गंभीर विचार
पहली मिशाल है 1871 की पेरिस के सर्वहारा क्रांति की
मजदूरों में स्वशासन की अक्षम्य भ्रांति की
बढ़ता जा रहा था जनाक्रोश
1870 में फ्रांस में बोनापर्ट के शासन के विरुद्ध
आजमा चुका था सारे विकल्प साम-दाम भेद के
बचा था एक ही विकल्प राष्टोंमादी युद्ध
ठान दिया युद्ध जर्मनी के राजा विस्मार्क के विरुद्ध
फ्रांस-जर्मनी की हाल आज के भारत-पाकिस्तान जैसी
राष्ट्रीय दुश्मन की थी दोनों को पारस्परिक जरूरत
एक दूसरे की शकल बनाते थे बदसूरत
खैर नहीं है यहां चर्चाी गुंजाइस बोनापार्ट की हार की
गणतंत्र जिंदाबाद के नारों की चीत्कार की
करने को नगर की सुरक्षा पेरिस के मजदूर हथियारबंद हुए
बंदूकें अपनी अपने ही शासकों को तान दिए
बनाया उन्होने जनतांत्रिक कम्यून
था उनमें स्वशासन का समाजवादी जुनून
राष्ट्रवाद वैचारिक औजार हेै शासक वर्गों का
जैसे धर्म था हथियार सामंती शासकों का
हों जब सीना ताने मजदूर सामने
राष्ट्रवाद चला जाता है तेल बेचने
किया पूंजी के दलालों ने जर्मनी से समझौता
मिलकर बनाया कम्यून को कुचलने का मसौदा
एक सप्ताह तक करती रहीं बमबाकी पेरिस शहर में
काला सप्ताह माना जाता है वह मानव इतिहास में
पेरिस शहक लाशों से पट गया
मारा गया 30, 000 सर्वहारा
देशद्रोहियों से मुक्त हो गयी फ्रांस की धरा
दूसरी मिशाल है इसी शताब्दी की
अमरीका के सभी लाल सलामियों के सफाए की
यह मिशाल आज ज्यादा मुफीद है
बहुत से देशद्रोही नक्सलियों के ज्यादा करीब है
यह दौर जान जाता है मैकार्थीवाद के नाम से
और अमरीका में दूसरे रेड-हंटिंग के काम से
बनी देशभक्ति के कानूनों की नई किताब
देशद्रोह था जिसमें लिखना-पढ़ना मार्क्सवाद
कोई भी जो रखा था कैसी भी लाल किताब
देना पड़ता था उन्हे अपनी देशभक्ति प्रमाण
वैज्ञानिक रोजनबर्ग पति-पत्नी को देने पड़े प्राण
हो गया अमरीका में हर तरह के वामी-कौमियों का सफाया
आज तक भी वांपंथ दुबारा उभर नहीं पाया
दोनों में सो कोई मिशाल आजमाई जा सकती है
और देशद्रोहियो से निजात पाई जा सकती है
(ईमि: 13.06.2017)

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