Sunday, October 15, 2017

गोधरा का सच -- 2

गोधरा का सच -- 2
गुजरात में भूकंप सहायता वितरण के लिए संघ ने कई यनजीओ खोले और राहत का एक उल्लेखनीय हिस्सा 'राष्ट्रवादी' जनजागरण में निवेश हुआ। इफरात में त्रिशूल-तलवारें खरीदे गए। यानि तैयारी लगभग साल भर से चल रही थी। यह जानकारी अहमदाबाद दंगे में सक्रिय रहे एक विहिप सदस्य ने दी थी। किसी कॉरपोरेट में युवा शॉफ्टवेयर इंजीनियर, वह दुर्योग से अहमदाबाद से दिल्ली यात्रा में हमारा सहयात्री था। मूर्खता में हमने उसकी बातें टेप नहीं किया। लेकिन हमारी फैक्ट-फाइंडिंग टीम के अन्य दोनों सदस्य, पत्रकार राजकुमार शर्मा और बचपन बचाओ आंदोलन से जुड़े, राजीव भारद्वाज गवाह हैं। यह कहानी विस्तार से अंतिम भाग में लिखूंगा, यहां सिर्फ एक बात बताता हूं, जिस क्रूर और वीभत्स संवेदना से मैं गुस्से से कांपने लगा था और राजकुमार मुझे पकड़कर बाहर सिगरेट पिलाने ले गए। मुसलमानों के देशद्रोह और विहिप-बजरंग की शूरवीरता पर उसके प्रवचन के बीच मैंने टोका कि 13 साल की लड़की से सामूहिक बलात्कार में कौन शूर-वीरता है तो उसने अतिमृदुभाषा में परसंतापी, कुत्सित मुस्कान के साथ जवाब दिया, “सर, जब ऊपर भेजना ही है तो संतुष्ट करके भेजो”। यह कहानी इस श्रृंखला के अंतिम भाग में।

जैसा कि इस श्रृंखला के पिछले भाग में बताया गया है कि पटेल की जगह मोदी के आने के बावजूद भाजपा की विश्वसनीयता घटती ही गयी और इनके मुख्यमंत्रित्व में हुए 3 उपचुनावों में मोदी ही मुश्किल से जीते, बाकी दो पर कांग्रेस। गुजरात के ऐतिहासिक दुर्भाग्य से वहां लोगों के पास दो ही चुनावी विकल्प हैं। सत्ता बचाने-बढ़ाने के लिए किसी बड़े खेल की जरूरत थी। शातिरपन और आपराधिक रणनीति में प्रवीणता के बावजूद अफवाहजन्य इतिहासबोध और मिथकजन्य (कु)ज्ञान तथा दिमाग पर शाखा की ड्रिल के अनुशासनात्मक दुष्प्रभावों के चलते संघ के विचार और कर्मपुरुषों के पास सकारात्मक अंतर्दृष्टि और रचनात्मक कार्यक्रम के अभाव में वे फौरी विश्वसनीयता के लिए, कमनिगाही में, विध्वंसात्मक रणनीति ही अपना सकता था। मंदिर मुद्दा दूरगामी दुष्परिणामों की अपनी ऐतिहासिक भूमिका निभाकर चुक गया था। अयोध्या और आसपास के लोगों को इसकी चिंता नहीं थी, 2002 में गुजरात में चुनाव था और भाजपा की हालत पतली थी। बाबरी विध्वंस के विजय की गौरवयात्रा की चुनावी फसल काट चुके थे। जनसंघ-भाजपा का इतिहास बौद्धिक-वैचारिक दिवालिएपन का भी इतिहास रहा है। धर्मोंमादी लामबंदी ही इनकी शक्ति और कमजोरी है। पेट का सवाल मंदिर के सवाल से पहले आता है। अज्ञान के अहंकार में मोदी सरकार ने मुल्क को आर्थिक तबाही के जिस रास्ते पर डाल दिया है, उससे इसका अंत निश्चित है, तबतक मुल्क को अपूरणीय आर्थिक-सास्कृतिक क्षति हो चुकी होगी। इतिहास में उतार-चढ़ाव आते हैं। खैर फुटनोट में फंस गया, कहानी पर वापस आते हैं। बाबरी विध्वंस के दसवें साल में राम-भक्ति का उफान अयोध्या के आसपास या उप्र या पड़ोसी राज्यों में नहीं, सुदूर गुजरात में आया। जत्था-का-जत्था कारसेवकों का अयोध्या आने-जाने लगा। उस समय के हिंदी अखबारों में रायबरेली-प्रतापगढ़ आदि स्टेसनों पर कारसेवकों की लंपटता की खबरें पढ़कर, लगता था और हमलोग आपस में बात करते थे कि संघी गुजरात चुनाव में मंदिर के नाम पर धर्मोंमादी लामबंदी पर करना चाहता है। लेकिन इनके इरादे भयानक थे। 27 फरवरी को, जैसा कि सुरेश मेहता के बयान से स्पष्ट है कि मोदी को पहले से मालुम था कि डिब्बे में आग लगने वाली थी और उन्होंने गोधरा के सांसद को एयरपोर्ट से सीधे गोधरा जाने का निर्देश दिया, जिन्हें रास्ते में ही वहां के डीयम ने फोनकर बताया कि कांड हो चुका था तथा वे सीधे उनके दफ्तर जाएं। घटना के आधे घंटे में ही मायाकोडनानी को खबर मुलती है कि महिलाओं के साथ बतात्कार हुआ है, गोरधन जाफड़िया (तत्कालीन गृहमंत्री), हरेन पांड्या (सांप्रदायिक शातिरपन में मोदी का प्रतिद्वंदी, जिनका सफाया हो गया, उनकी पत्नी ने मोदी पर संदेह जाहिर किया है) आधे घंटे में ज्योतिषीय जांच से पता कर लेते हैं कि यह आतंकवादी हमला है और मोदी उसी ज्ञान से इसके व्यापक पूर्वनियोजित साजिश का हिस्सा होने का। चलो ये लोग तो गोधरा से कुछ ही दूरी पर थे। उतनी ही देर में दिल्ली में बैठे अडवानी ने भी ज्योतिषज्ञान से आतंकवादा हमले पता कर लिया।

जारी.......     


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