Tuesday, October 3, 2017

मार्क्सवाद 85 (आस्था और विवेक)

Rakesh Tiwari ढाई हजार साल पहले एक यूनानी दार्शनिक हेराक्लिटस ने कहा कि परिवर्तन ही दुनिया का एकमात्र स्थाई भाव है। जिसका भी अस्तित्व है, अंत निश्चित है, पूंजीवाद और ब्राह्मणवाद उसके अपवाद नहीं हैं। विरेंद्र शायद पोथी वाले पंडित जी की बात व्यक्तिबाचक नहीं, भावबाचक संज्ञा में कर रहे हैं। पोथी के मिथकों की समाप्ति और विवेकजन्य नैतिकता की सामाजिक स्वीकृति दुनिया में मानव-मुक्ति का बुनियादी चरण होगा।मिथकीय (कु)ज्ञान पर भारत का एकाधिकार नहीं है। आस्थाऔर विवेक के बीच संघर्ष का इतिहास पुराना है, अंततः जीत विवेक की ही होती है, विवेक के हिमायती को शहादत भले ही देनी पड़े। सुकरात, ब्रूनो, गैलेलियो, पाश की कहानियों से इतिहास भरा पड़ा है।1600 में वैज्ञानिक ब्रूनो को जब रोम के चौराहे पर जिंदा जलाया जा रहा था, आस्थावान तमाशबीन भीड़ उत्सव मना रही थी। कौन जानता है इनके हत्यारों को? इतिहास की खाक में मिल जाएंगे डाभोलकर, पनसारे, कलबुर्गी, लंकेश... के हत्यारे और उनके विचारपुरुष। विवेक के इन सिपाहियों की शहादत, विवेक के सिपाहियों की अगली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा श्रोत बनी रहेगी। विवेक की हर विजय के साथ मिथक आधारित आस्था का एक गढ़ ढहता है, नये बनते-ढहते हैं। पूंजीवाद का मिथक है कि श्रमशक्ति के खरीद-फरोख्त की व्यवस्था ही अंतिम सत्य है और हर इंसान स्वार्थी है और स्वहित में कुछ भी करता है। यह मनुष्य के स्वभावक के बारे में उदारवादी(पूंजीवादी) मनोवैज्ञानक मिथक पर आधारित आस्था है और इसके विरुद्ध कामगरों का संघर्ष विवेक का वाहक। मैं अपनी छात्राओं और दलित छात्रों को कहता हूं कि तुम लोग भाग्यशाली हो कि 1-2 पीढ़ी बाद पैदा हुए लेकिन तुम्हारे अधिकार और आजादी पिछली पीढ़ियों के संघर्षों का नतीजा है। बाबा आदम के जमाने की बात नहीं 35-40 साल पहले तक महलाओं और दलितों की प्रवृत्तियों के बारे में कितने मिथक थे सब धीरे-धीरे टूट रहे हैं। बीयचयू की बहादुर बेटियों ने कितने मर्दवादी मिथक एक झटके में तोड़ दिया। 1982 में मुझे अपनी बहन के पढ़ने के लिए (वनस्थली, राजस्थान) पूरे खानदान से कठिन संघर्ष करना पड़ा था। आज कोई बाप कह सकता है, लड़के को पढ़ाएगा, लड़की को नहीं? मिथक आधारित आस्था की बुनियाद ही खोखली होती है, टूटना ही है, देर-सवेर। यह संघर्ष तब तक चलता रहेगा जब तक मिथकों की बुनियाद पर खड़े आस्था के सारे दुर्ग ध्वस्त नहीं हो जाते और धरती पर मानव-मुक्ति का परचम नहीं लहराता। कुछ और करना था, आपने फंसा दिया।

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