Tuesday, October 3, 2017

मार्क्सवाद 87 (रामायण)

Alok Singh मार्क्सवाद कुछ पढ़ लें तब अवधारणा बनाएं। राम कथा से मिलती जुलती एक लोक कथा फारसी साहित्य में है। किसी भी वैदिक ग्रंथ में इसका जिक्र नहीं है। बुद्ध के प्रभाव से वर्णाश्रम दरकने लगा तब ब्रह्मा-विष्णु-महेश की कल्पना की गयी और वर्णविभाजन को दैवीय दिखाने की सफल कोशिस। जब विष्णु ही नहीं थे तो अवतार कौन लेते? रामायण, महाभारत, मनुस्मृति तथा ज्ञान-विज्ञान, साहित्य की अन्यान्य रचनाएं गुप्तकाल की हैंं। महाभारत के शांतिपर्व और मनुस्मृति में राजधर्म लगभग एकदूसरे के कॉपी-पेस्ट हैं।

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