Tuesday, October 10, 2017

वह गीत

वह गीत

केपी शशि

तब लिखूंगा वह गीत
जब जहर उगलते तुम्हारे होठ
सिल दिए जाएंगे समरसता के
रंग-विरंगे खूबसूरत धागों से
वह गीत तब लिखूंगा
जब नहीं सने होंगे
अपनी गोमाता के चमड़े के बने
तुम्हारे बूट हमारे
हमारे भाई-बहनों के गर्म खून से

वह गीत मैं तब गाऊंगा
जब मिथ और गल्प कथाओं की बुनियाद पर
खड़े तुम्हारे किले ढहने लगेंगे
तूफान मे साथ ताश के पत्तों की तरह
तुम्हारे अपने झूठों की मार से।

मैं वह गीत तब गाऊंगा
जब हम पर
चलाई गयी तुम्हारी गोलियां
बरसेंगी सपनों के फूलों की तरह
आज और कल के बच्चों के लिए

अपने दुख-दर्द के
अनटूटे धागों के गिटार पर
मैं बजाऊंगा वह धुन
और देखूंगा
चाकू, बंदूक और बम चलाने की अभ्यस्त
शर्म से थरथराती तुम्हारी उंगलियों को

वह गीत सुनूंगा
उनकी यादों के साथ
जिन्हें तुमने मार डाला है
खून में डूबे हाथ
संघर्षरत होंगे टाइप करने को
दागदार अक्षरों के शब्द
भेद नहीं सकती जिन्हें तुम्हारी गोलियां
जो दिन-रात जगाते रहेगें तुम्हें
अहंकार की निद्रा से
डालने को कैदखाने में
गुनाहों के दु:स्वप्न द्वारा

वह गीत तब गाऊंगा
जब तुम्हारे टूटे हेल्मेटों के अंदर का अंधेरा
रौशन होगा
जब सड़के होंगी बेखौफ
अंतरात्मा पर मड़राते मौत के साये से
गाऊंगा मैं वह गीत
उस भोर में
जब चहकेगा गगन धरती के सभी रंगों से
और सभी रंगों के बच्चे
धरती पर तुमको घूरते हुए
खुशियों से नाच पड़ेंगे
और तुम्हारे चमकने-गरजने के बाद
एक नई बरसात होगी
पनपेंगी जिनमें नई कलियां और पंखुड़ियां
बिखेरते हुए आजादी के विभिन्न रंग
भविष्य के गीतों के स्वागत में
गाऊंगा मैं वह गीत

अनवाद: ईश मिश्र

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