Friday, December 8, 2017

फुटनोट 149 (धर्म परिवर्तन)

मैंने ऊपर कहा नहीं कि तलवार के बल पर धर्म परिवर्तन होता तो दिल्ली-आगरा के आसपास मुसलमान बहुसंख्यक होते। अगर ब्रह्मा की बद्दमीजी से शूद्र पैदा होता और शूद्र होने का मतलब समझ पाता तो एक क्षण भी हिंदू जातिव्यवस्था में न रहता। जन्मना शूद्र जो समझ पा रहे हैं, वे इसे लात मार रहे हैं, लेकिन बहुत से जिनके बाप-दादा की अंजुलि में 2 फीट ऊंचे से पानी पिलाया जाता था कि पानी की धार की नजदीकी से हिंदू (पंडितजी, बाबूसाहब,..,..) का बर्तन अपवित्र हो जाता था वे पूर्वजों की नासमझी दोहराते हुए हिंदू होते जा रहे हैं। मुझे तो जब से ब्रह्मा का फरेब समझ आया (अपेक्षाकृत जल्दी), जन्मना ब्राह्मण होने के बावजूद मैं इस व्यवस्था से निकलकर धर्मपरिवर्तन की बजाय धर्मों के फरेब से ही निकल आया और भगवान का भय त्यागने के दुस्साहस से नास्तिक बन गया। उस समय की सामाजिक चेतना के स्वरूप के चलते शायद ये कारीगर और शिल्पी धर्म के बिना जीवन का कल्पना नहीं कर सके होंगे और सामाजिक प्रतिष्ठा की लालच में धर्म परिवर्तन कर लिया कि वहां जात-पांत नहीं है, लेकिन वहां पहुंचते ही वहां भी जात बनी रही।

सबसे ज्यादा धर्म परिवर्तन किसने किया? नाई, बढ़ई, लोहार, बूचर, दर्जी, धुनिया, जुलाहा...... यानि कारीगर और शिल्पी जो आर्थिक रूप से स्वतंत्रत थे किंतु सामाजिक रूप से परतंत्र। समानता के मुगालते में इस्लाम माना और वहां भी ठगे गए। तलवार से धर्मपरिवर्तन होता तो दिल्ली-आगरा के पास सबसे अधिक मुसलमान होते, लेकिन थो सिंध-बलूचिस्तान-पश्चिमी पंजब-पूर्वी बंगाल में।

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