Saturday, April 28, 2018

लल्ला पुराण 206 (गढ़चिरौली फर्जी मुठभेड़)

आप बाभन से इंसान बन जाइए सब समझ में आ जाएगा, वरना आजीवन पंजीरी खाकर भजन गाते रहिए। वैसे भाषा की तमीज मां-बाप से सीखा या शाखा में? 99% मुठभेड़ें फर्जी होती हैं। भाड़े के हत्यारों में वास्तविक मुठभेड़ का साहस नहीं होता, अगर उनके आकाओ ने जबरदस्ती मरने के लिए न भेज दिया तो। वही सुरक्षा बल जो 1947 तक अंग्रजों के तलवे चाटते हुए उनके हुक्म से अपने हिंदुस्तानी भाइयों का कत्ल करते थे अब वही अपने काले अंग्रेज आकाओं के कहने पर अपने ही जैसे गरीबों का कत्ल करते हैं। भाड़े का हत्यारा शहीद नहीं होता, उसकी मौत को शहादत कह कर गौरवान्वित किया जाता है कि मारने, मरने के लिए भाड़े के हत्यारों की निरंतरता बनी रहे। योगी की पुलिस उप्र की सबसे बड़ा गुंडा गिरोह है।

Friday, April 27, 2018

मोदी विमर्श 76 ( जेयनयू में गुंडागर्दी)

जेयनयू में एबीवीपी की गुंडागर्दी पर एक पोस्ट पर इलाहाबाद विवि से उच्च-शिक्षित श्रीवास्तव जी गद गद हो गए, उस पर --
अपराधियों के समर्थक अपराध के सहभागी होते हैं। भक्त के दिमाग में गोमाता का इतना पवित्र गोबर भरा होता है कि वह पंजीरी खाकर भजन करते हुए हत्यारे-बलात्कारियों का हमदर्द बन जाता है, इंसान बनने में अक्षम बेचारा दोपाया।

मोदी विमर्श 75 (आशिफा)

Haider Rizvi साहब की बलातकार और हत्या जैसे जघन्य अपराधों के सांप्रदायीकरण पर एक पोस्ट पर एक सज्जन हिंदू-मुसलमान करने लगे। उस पर --

बाभन से इंसान बनने के सुख से वंचित ये मानसिक-दिव्यांग, भक्त हैं, जिनकी संवेदना इतनी बर्बर हो चुकी है कि 8 साल की बच्ची के क्रूरतम बलात्कार और हत्या के पक्ष में खड़े हो गए हैं क्योंकि उस घुमंतू आदिवासी बच्ची का नाम मुसलमानों सा है। इनके ब्रह्मज्ञान का मतलब शायद बलात्कार होता है।

ईश्वर विमर्श 57 (बाबा और बलात्कार)

सारे अपराधी और बलात्कारी बाबा, बापू, स्वामी, स्वघोषित भगवान संघ और जनसंघ/भाजपा की राजनैतिक संपदा रहे हैं, इसीलिए हेमामालिनी, केंद्रीय मंत्री, संतोष गंगवार समेत सारे भाजपाई बलात्कारियों के साथ खड़े हैं। जिस देश का प्रधानमंत्री धनपशुओं का चाकर जनसंहार तथा सार्वजनिक सामूहिक बलात्कार तथा फर्जी मुठभेड़ का आयोजक हो तथा शासक पार्टी का तड़ीपार अध्यक्ष, बिके हुए पट्टाधारी जजों की बदौलत क्लीनचिटिया हो उस देश का भविष्य अंधकारमय है। जितने भाजपाई बलात्कारियों के समर्थक हैं सब मनसा हत्यारे-बलात्कारी हैं।

ईश्वर विमर्श 53 (आसाराम)

आसाराम ने सैकड़ों एकड़ जमीन दिल्ली के वनविभाग के आरक्षित रिज में कब्जा कर रखा है जहां अब भी हजारों की भीड़ जुटती है, उसकी तथा सारे बाबाओं-माइयों; साधू-साध्वियों तथा भगवानों की संपत्ति जब्त होना चाहिए लेकिन सरकार ही इन बलात्कारी बाबाओं के चेलों की है, कौन करेगा जब्ती? जनता कौन सी जनता? लोगों जागो और मठों और बाबा-माइयों की हराम की अकूत संपत्ति पर धावा बोलकर कब्जा करो।

शिक्षा और ज्ञान 156 (हिंदू संस्कृति की प्राचीनता)

मित्र, बात तथ्य-तर्कों से की जाती है, लाखों साल पहले दोपाये फल-फूल कंदमूल खाकर जीते थे, उन्हें भाषा का ज्ञान नहीं था, वह हिंदू संस्कृति थी क्या? आप चूंकि विज्ञान के विद्यार्थी रहे हैं इतिहासबोध की आपकी अवैज्ञानिकता समझ में आ सकती है, ऊपर बाभन से इंसान बनने में असमर्थ जिस दोपाये की बात की है वह प्रोफेसर है, वह भी जेयनयू में, जहां की हवा में तर्क-विवेक विखरे हैं, लेकिन बंद दिममाग में कैसे घुसे? हिंदू शब्द का ईजाद सिंधु घाटी के बासिंदों की भौगोलिक पहचान के लिए 10वीं शताब्दी में अरबों ने किया। वैदिक काल 300-1000 ईशापूर्व है। ऋगवैदिक आर्य सप्तसिंधु (सिंधु-पंजाब की 5 नदियों - तथा विलोप हो चुकी सरस्वती नदियों का क्षेत्र) में रहते थे। मारुत, इंद्र आदि प्राकृतिक देवताओं की पूजा करते थे। ब्रह्मा-विष्णु-महेश नदारत हैं। बौद्ध साहित्य तथा कौटिल्य के लेखों में इनका कोई जिक्र नहीं है। जब विष्णु ही नगीं थे तो वर्णाश्रम को बचाने-बढ़ाने तथा धरती को रक्तरंजित करने के लिए अवतार कहां से लेते? बाबा साहब अंबेडकर ने गीता पर अपने अधूरे लेख का सटीक शीर्षक दिया है. 'प्रतिक्रांति की बौद्धिक पुष्टि: कृष्ण और उनकी गीता'। ब्राह्मणवादी रूढियों और कर्मकांडों के विरुद्ध बौद्ध की बौद्धिक क्रांति के बाद की ब्राह्मणवादी प्रतिक्रांति। रामायण, महाभारत पहली सदी ईशापूर्व और दूसरी ईश्वीय सदी के बीच ब्राह्मणवाद को दैवीय बताने के लिए रचे गए। गीता में कृष्ण का यही सिद्धांत है।

Wednesday, April 25, 2018

मोदी विमर्श 74 (जज लोया की हत्या)

भारत के मुख्य न्यायाधीश को जज लोया की हत्या का मामला रफा-दफा करने के लिए तड़ीपार से कितना पैसा मिला होगा तथा उसमें कितना हिस्सा उसके खिलाफ महाअभियोग को खारिज करने के लिए वेंकैय्या नायडू का होगा? ऐसे ही मन में सवाल उठा।

Tuesday, April 24, 2018

शिक्षा और ज्ञान 155 (शाखा प्रकरण)

एक मित्र ने 1963 में गणतंत्र दिवस में आरयसयस की भागीदारी के सवाल पर मुझे टैग किया, उस पर कमेंट:

मैें पैदा तो हो गया था 1963 में लेकिन आरयसयस के बारे में नहीं जानता था, 8 साल का गांव का ब्राह्मण बालक था। शाखा नेटवर्क तब तक गांव में नहीं पहुंचा था। 1966-67 में पहली बार जनसंघ का नाम सुना जब गांव-गांव के सारे साधू-सवाधू दिल्ली गोरक्षा का जुलूस निकालने गए थे। 1969 में एक अर्ध स्वयंसेवक के रूप में (अर्ध इसलिए कि मैं गणवेश नहीं पहनता था, बेहूदे वेश का कोई मतलब नहीं समझ आता था), गोलवल्कर को सुनने बिनियाबाग गया। उनकी बातें मुझे अपने गांव के पुरोहिती कर्म के पेशेवर, छांगुर पंडित की बातों की तरह बे-सिरपैर की लगी थी। जहां तक शाखा और बौद्धिकों में सुनी बातों की याद है तो तिरंगे को राष्ट्रद्रोही झंडा बताया जाता था और नेहरू गांधी को खलनायक। गोडसे का भी महिमामंडन होता था। उस समय का जौनपुर के प्रचारक वीरेश्वरजी ने बताया था कि औरंगजेब ने इतने हिंदू मारे कि 100 मन जनेऊ जलाया गया। मैंने अंदाजन हिसाब लगाया तो 100 मन का मतलब लगभग 4000 किलो यानि 4 कुंतल। अगर एक जनेऊ (मैं तब तक तोड़ चुका था) 5 ग्राम का होता हो तो करोड़ों जनेऊधारी कत्ल किए गए और जनेऊ 12-15% लोग ही पहनते थे। तो उत्तर भारत की पूरी आबादी कितने सौ करोड़ रही होगी? इस सवाल से वह झल्ला गये क्योंकि शाखा के बौद्धिकों में सवाल पूछने की परंपरा नहीं थी। शायद वही वीरेश्वर द्विवेदी आजकल विहिप के राष्ट्रीय सचिव हैं।

Sunday, April 22, 2018

शिक्षा और ज्ञान 154 (योगी-मोदी)

1968-69 में पूर्वी उप्र में छात्र आंदोलन के दौरान जौनपुर बस-स्टेसन के चौराहे पर बीयचयू के एक समाजवादी छात्रनेता, रामबचन पांडेय (शायद) ने एक घोर स्त्रीविरोधी नारा दिया था, 'यूपी में बांझराज, दिल्ली में राणराज, उप्पर से कामराज, कैसे अइहै रामराज'। आधुनिक शिक्षा की पहली पीढ़ी के, मर्दवादी-ब्राह्मणवादी परिवेश में पले 13-14 साल के ब्राह्मण बालक की सामाजिक चेतना ऐसी नहीं थी कि बुरा लगता, लेकिन यह नारा बाद तक याद और कचोटता रहा। आज उसका वैकल्पिक नारा होना चाहिए, 'यूपी में लंपटराज, दिल्ली में नरसंहारी राज, उप्पर से नगपुरियावाद (ब्राह्मणवाद), कैसे अइहे रामराज'।

शिक्षा और ज्ञान 153 (नेहरू)

किसने कहा कि अब पाकिस्तानी हमें इतिहास पढ़ाएंगे? नरभक्षी मोदी के नेतृत्व में अपराधियों की सरकार भारत को पाकिस्तान बनीने के रास्ते पर है। आप भी जानते हैं नफरत अभियान की हकीकत। रोजी-रोटी के मुद्दे से ध्यान हटाने के लिए यहनफरत-नफरत का खेल चल रहा है। पहले दक्षिण एसिया में अमेरिकी साम्राज्यवाद का एक ही दलाल था, अब भारत को मिलाकर दो हो गए हैं। कभी हिंदू-मुसलमान; बाभन चमार के संदर्भों से ऊपर उठकर एक निखालिस इंसान के रूप में सोचें। पहली बार एक ऐसा सेनाध्यक्ष हुआ है जो राजनैतिक बयान दे रहा है, जनरल अयूब तख्तापलट कर सैनिक तानाशाही थोपने के पहले ऐसी ही युद्धोंमादी बयानबाजी करता था, जिसकी परिणति 1965 के युद्ध में हुई, जिसमें दोनों ही तरफ के हजारों सैनिक (इंसान) हताहत हुए तथा दोनों देशों में अकाल पड़ा। जंग चाहता जंगखोर ताकि राज कर सके हरामखोर। नेहरू इस मुल्क के एकमात्र युगद्रष्टा प्रधानमंत्री हुए हैं। नीचे कमेंटबॉक्स में अगस्त 2017 में छपे अपने लेख का लिंक देरहा हूं।

Thursday, April 19, 2018

राज्यसभा का अमृत

सुनो क्या नाम है तुम्हारा प्रसून जोशी
तो बन ही गए तुम भी भक्तिभाव को रोगी
नहीे हैं राज्यसभा की पात्रता महज भंड़वागीरी
बजाना पड़ता पड़ता है मजहबी नफरत की खझड़ी
पैदा करनी होगी निक्करधारी-विशिष्ट प्रवृत्ति
और करनी होगी प्रवृत्ति की सतत पुनरावृत्ति
बनना होगा यमजे अकबर और चंदन मित्रा
आदर्श है जिनके सड़कछाप लंबित पात्रा
लेकिन लेते रहो पवित्र पात्रों के चरणामृत
कभी तो टपकेगा राज्यसभा का अमृत
(ईमि:19.04.2018)

Wednesday, April 18, 2018

शिक्षा और ज्ञान 152 (बाभन से इंसान)

Amit Dwivedi बजरंगी, लंपट के साथ मूर्ख भी होता है, एक बार जो भजन रट लेता है, तोते की तरह पंजीरी खाकर भजन गाता रहता है। कितनी बार साबित हो चुका और छप चुका है कि भारत तेरे टुकड़े होगे के नारे बजरंगी घुसपैठियों ने लगाए थे जिसे मनस्मृति इरानी के सहायकों ने छी न्यूज से मिलीभगत कर नारे डॉक्टर्ड किए थे। लेकिन भक्त तो बंद दिमाग दोपाया होता है, शाखा की परेड चिंतनशक्ति कुंद कर देती है, रही सही कसर वर्दी की परेड पूरी कर देती है। दुनिया कहीं पहुंच जाए पंडीजी गुंगवामहे ही रटते रहेंगे। जनेऊ तोड़ना प्रतीकात्मक शुरुआत है बाभन से इंसान बनने की, यानि जन्म की जीववैज्ञानिक दुर्घटना की अस्मिता की प्रवृत्तियों से ऊपर उठकर विवेकसम्मत अस्मिता अर्जित करने की लंबी, कष्टकारी, आंतरिक संघर्ष की प्रक्रिया की। आपकी गुंगवामहे प्रवृत्ति की तोतागीरी तो इसी से पता चलती है कि लाल सलाम की मैंने कोई बात ही नहीं की और आपके सिर पर लालसलाम का भूत सवार हो गया।

आपकी दूसरी बात:
"इंसान बनना सरल है ब्राह्मण बनके जीवन जीना कठिन। तभी जनेऊ लोग तोड़ देते है और उन्मुक्त हो जाते हैं।"

इंसान बनना इतना सरल होता तो धरती रक्तपातविहीन सुख-सम्मान; अमन-चैन का ग्रह बन जाता, आप भी पढ़-लिख कर डिग्री और नौकरी के साथ-साथ बाभन से इंसान बन गए होते। ब्राह्मण बनकर जीने में क्या कठिनाई है? दिमाग बंद कर वही सब दुहराते रहिए जो बाप दादा करते आ रहे हैं! दिमाग का इस्तेमाल मनुष्य को पशुकुल से अलग करता है। सादर शुभकामनाएं।